आत्मा जो तृप्त हो जाती थी : काबली सूरी (स्थानीय नाम)
कुछ भी कहने-सुनने से पहले ये बताएं खाया है
इन्हें ? झूठ तो राई भर भी न
बोलियेगा। मेरे पास झूठ पकड़ने वाली एप्लीकेशन है। खाया है तो ये भी बताइए। इसका
स्वाद कैसा होता है ?क्या इसे खाना हलवे जितना
आसान है?
मित्रों हमारे यहाँ इसे
"काबुली सूरी" कहते हैं । खूब खाई है बचपन में और उसी बचपन को 1-2 दिन पहले फिर से जीया। खूब याद किया उस फुर्सत के जमाने को । नासमझी
में छुपी समझदारी को। पाठशाला से आते-जाते अपनी झोलियों में भर लिया करते थे। ऊँची
सी जगह बैठ इसे तोड़ने में बरती सावधानी पर चर्चा के साथ इसके महीन काँटों को साफ़
किया करते थे। फिर हंसी ठिठोली का नमक छिड़क चटखारे लिया करते थे। इनका खट्टा-मीठा
स्वाद आत्मा तक को तृप्त कर दिया करता था । उस आत्मा की बड़ी चाह है मित्रों जो
काबुली सूरी से तृप्त हो जाया करती थी।
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