क्या सीखा हुआ व्यवहार में आता है?
Attitude: Teacher can change
संजय कुमार
अभिवृति (ATTITUDE)
किसी आदत का व्यवहार में आ जाना हमारी अभिवृति में शामिल है। यह हमारी पसंद और ना पसंद को दर्शाता है। अभिवृति में क्या ,कब और कैसे आता है? और आ जाने से कौन सा किला फतह हो जायगा? कौन सा ढह जायेगा? इन्हीं सब बिन्दुओं पर यह लेख बात कर रहा है।
अभिवृति निर्माण के मोटे-मोटे 4 चरण है। बाकी आप जोड़िएगा।
1. जानकारी
2. समझ
3. कौशल(अभ्यास)
4. अभिवृति
इस तरह से बात नहीं बनेगी। चलिए एक कहानी सुन-पढ़ लेते हैं। नहीं पढ़नी- सुननी? हाहा... हाहा ...इस समय ऐसा कहने का मौका ही नहीं है आपके पास। क्यों न इस मौके का फायदा उठा लिया जाये। सो मैंने उठा लिया। अब तो सुनिए-पढ़िए ही। भाषाई गुर्राहट का पूरा मौका है।
इस तरह से बात नहीं बनेगी। चलिए एक कहानी सुन-पढ़ लेते हैं। नहीं पढ़नी- सुननी? हाहा... हाहा ...इस समय ऐसा कहने का मौका ही नहीं है आपके पास। क्यों न इस मौके का फायदा उठा लिया जाये। सो मैंने उठा लिया। अब तो सुनिए-पढ़िए ही। भाषाई गुर्राहट का पूरा मौका है।
कुछ वर्ष पहले की बात है। एक शिक्षक-प्रशिक्षण के दौरान मुझे हिंदी विषय के भाषागत एवम् विधागत पक्ष को पढ़ने-पढ़ाने का तरीका समझ में आया। अब यह कह कर अपनी चमड़ी नहीं बचाऊँगा कि मुझे पहले से बहुत कुछ आता था। आया क्या? निपुणता से समझाया गया भई। तब जाकर आया। इतनी बार समझाया-करवाया गया कि कोफ़्त होने लगी थी। कभी-कभी अहम् भी कुंचालें मारने लगता और वह असहमति बन उन्मादी फन उठाने लगता। पर वो जो स्नेहिल डाइस के उस तरफ विराजते थे। बड़े षड्यंत्रकारी थे।बिल्ली को सीधा पड़ने ही नहीं देते थे। गलती करने पर तब तक नहीं सुधारते-बताते जब तक कि अपनी गलती को समझ कर खुद ही ठीक न कर लूं। धीरे-धीरे बहुत अच्छा लगने लगा। पेट में गुदगुदी होने लगी। इतना आसान था। जिसे मुश्किल समझ कर, निठल्ला बैठा था। उस सीखने-सीखाने के क्रम का दिल-दिमाग भर आनंद लिया और वापिस अपने कर्मस्थल के लिए विदा हुआ।
सुझाई गई विधियों-गतिविधियों को आजमाने का मन हुआ। समझ ने उत्साह और कर्मशीलता को आसमान दिखा दिया। प्रशिक्षण का प्रभाव कक्षा तक मेरे साथ आ गया था। फिर क्या था? पाठशाला आ कर जुट गया आजमाइश में। बार-बार उन तरीकों , युक्तियों ,विधियों और गतिविधियों को जांचा, परखा और प्रयोग किया। कुछ को हूबहू अपनाना सफल रहा। कुछ को बच्चों ने बदलने पर मजबूर कर दिया। बदला। फिर प्रयोग किया। करता ही गया। कराता ही गया। कई दिनों तक। इस क्रम में नकारात्मकता भी उभरी पर जल्द ही सकारात्मकता में बदलती गई।
इन्हीं प्रयासों ने मेरे अन्दर हिंदी-शिक्षण के कुछ कौशलों का विकास किया। फिर क्या था ? मैं इन कौशलों से खुद और बच्चों को भाषायी आनंद की अनुभूति करता -करवाता रहा। इसी दौरान शिक्षक-प्रशिक्षण में बतौर स्त्रोत व्यक्ति अन्य अध्यापक साथियों के साथ अपने अनुभव साँझा किये। उनकी प्रतिक्रियाओं, सुझावों ने समझ को और भी पुख्ता किया। वापिस स्कूल आ कर वही क्रम शुरू। आनंद आने लगा।
और फिर वो दिन भी आ ही गया। जिसका सबको इंतज़ार रहता है। रहता है न .....???? नहीं-नहीं..... परीणाम का दिन नहीं। वो दिन जब मुझे अपनी समझ और कौशलों का शिक्षण में प्रयोग के लिए बिल्कुल भी प्रयास नहीं करना पड़ा। जरा भी सोचना नहीं पड़ा।थोड़ा भी सजग नहीं रहना पड़ा। कतई मुश्किल नहीं हुई। यहाँ तक की मुझे पता ही नहीं चला कि मैंने कुछ सीखा हुआ कक्षा में आज़माया। मुझे ऐसा लगा कि यह तो मेरा व्यवहार ही है। जैसे, मैं तो हमेशा से ऐसे ही पढ़ता-पढ़ाता आया हूँ। कुछ नया जान ही न पढ़ा।
अब मेरी समझ में आया कि कैसे कोई बात/जानकारी, समझ के रास्ते कौशलों (अभ्यास) के यहाँ होती हुई अभिवृति (व्यवहार ) तक पहुंचती है? सीखा हुआ अब मेरे व्यवहार में शामिल हो गया था। मौज हो गयी थी, बच्चों की और उनके अध्यापक की भी।
उत्साह खोने-सहेजने में छोटी-छोटी चीजों का अहम योगदान रहता है। फिर क्यों न तुच्छ लगने वाली बातों से भी उत्साहित हो कर नकारात्मकता को नकार दिया जाए। हतोत्साहित करने वाली घटनाओं को उल्लास का उत्सव बना दिया जाए। चलिए ........ आते हैं , बुलाते है, सभी हाथ पकड़ कर आगे बढ़ते और बढ़ाते हैं। नौजवनों के जोश को उम्रदराजी का तड़का लगा कर अनुभव से सजा कर बढ़िया सा भाषाई व्यंजन बनाते हैं।जिसे सब खाएं और प्रभु के गुण गायें। कुछ व्यवहार में लायें।
अब पूरा मैदान आपके हाथ है .......... ।
खालिस देसी घी का छौंका(टिप्पणी) आप भी लगा दीजिये।
क्रमशः आपके स्नेह पर निर्भर।
खालिस देसी घी का छौंका(टिप्पणी) आप भी लगा दीजिये।
क्रमशः आपके स्नेह पर निर्भर।
आप यहाँ तक पढ़ें है। आपका धन्यवाद। अपनी राय के साथ इस लेख को शेयर जरूर करें। कुछ लेख आपके लिए भेंट स्वरूप।
प्राथमिक कक्षाओं हेतु दैनिक समय नियोजन (समय-सारणी)अनुमानित पाठ्यचर्या विभाजन और समय निर्धारण
महत्वपूर्ण स्त्रोत:
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